क्या आप जानते हैं कि भारत के 7,500 किलोमीटर लंबे समुद्री तटों के नीचे एक अनमोल संपदा बसी है। यह सम्पदा है सीवीड यानी Seaweed। यह पोषक तत्वों से भरपूर समुद्री पौधा अब न सिर्फ़ पोषण की कमी को दूर कर सकता है, बल्कि लाखों तटीय परिवारों की आजीविका का आधार भी बन रहा है।
क्या है Seaweed और यह क्यों है ख़ास?

सीवीड (Seaweed) समुद्र तथा महासागरों में उगने वाला एक प्रकार का समुद्री पौधा (marine algae) है। यह मुख्यतः उथले पानी (shallow waters) में चट्टानों या अन्य सतहों से चिपककर उगता है। यह आकार, रंग और उपयोग में विविध होता है। इसकी हरी, भूरी और लाल रंगों की अलग-अलग प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सीवीड में 54 प्रकार के सूक्ष्म पोषक तत्व, विटामिन्स, और अमीनो एसिड होते हैं जो कैंसर, मधुमेह, गठिया, दिल की बीमारियों और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं से लड़ने में मदद करते हैं। इसको ना तो भूमि की ज़रूरत है, न ताज़ा पानी की और न ही खाद या कीटनाशक की, यानी यह पूरी तरह सतत और पर्यावरण हितैषी है।
वैश्विक बाज़ार और भारत की हिस्सेदारी
सीवीड का वैश्विक बाजार आज 5.6 अरब अमेरिकी डॉलर का है, जो 2030 तक 11.8 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है। भारत इस उभरते बाज़ार में तेज़ी से अपनी जगह बना रहा है। प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत भारत ने 2020 से 2025 के बीच ₹640 करोड़ का निवेश कर 1.12 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य तय किया है।
तमिलनाडु में बनेगा देश का पहला Seaweed Park
केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में एक मल्टीपर्पस सीवीड पार्क और दमण एवं दीव में ब्रूड बैंक स्थापित करने की योजना शुरू की है। अभी तक 46,095 राफ्ट और 65,330 ट्यूबनेट्स को मंज़ूरी दी जा चुकी है।
सीवीड के विविध उपयोग: खेती से सौंदर्य तक
- खाद्य उद्योग: जापान, चीन, कोरिया में यह पारंपरिक आहार है।
- बायोस्टिमुलेंट: खेती में पौधों को मज़बूत बनाने में कारगर।
- दवाएं और कॉस्मेटिक्स: एल्गिनेट, एगर और कैरेजिनन जैसे यौगिक निकलते हैं।
- जलवायु परिवर्तन का समाधान: यह CO₂ अवशोषित करता है और समुद्री पारिस्थितिकी में सुधार करता है।
महिला सशक्तिकरण की मिसाल
तमिलनाडु के मंडपम की जया लक्ष्मी, थंगम, जया और कलीस्वरी कभी गृहस्थ जीवन में व्यस्त साधारण महिलाएं थीं। आर्थिक तंगी और सीमित अवसरों के बीच उन्होंने सीवीड खेती का एक नया रास्ता चुना ।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत प्रशिक्षण प्राप्त कर, उन्होंने ₹27,000 के शुरुआती निवेश और TAFCOFED (तमिलनाडु राज्य मत्स्य सहकारी महासंघ) के सहयोग से सीवीड की खेती शुरू की। तमाम प्राकृतिक चुनौतियों जैसे की चक्रवात, पोषक तत्वों की कमी और बाज़ार में अस्थिरता के बावजूद इन महिलाओं ने 36,000 टन गीले सीवीड का उत्पादन कर दिखाया।
इस पहल ने न केवल उन्हें आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाया, बल्कि दर्जनों अन्य महिलाओं को भी रोज़गार के अवसर प्रदान किए। आज ये महिलाएं अपने गांव की रोल मॉडल बन गई हैं ।
तकनीकी नवाचार – ऊतक संवर्धन (Tissue Culture)
CSIR-CSMCRI द्वारा विकसित तकनीक से Kappaphycus alvarezii प्रजाति का उत्पादन अब और भी तेज़ और गुणवत्तायुक्त हो गया है। इस तकनीक से किसानों ने दो चक्रों में 30 टन उत्पादन किया है।
निष्कर्ष
सीवीड खेती भारत के लिए एक हरित क्रांति का वाहक बन सकती है। जो पोषण, पर्यावरण और आर्थिक विकास तीनों को एक साथ साधती है। अगर सही ढंग से नीति समर्थन और बाज़ार तक पहुंच सुनिश्चित की जाए, तो यह समुद्री खेती भारत की “ब्लू इकोनॉमी” में नई ऊर्जा भर सकती है।
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