दिल्ली और आसपास के इलाकों में Stray Dogs की समस्या को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सख्त निर्देश जारी किए हैं। अदालत ने कहा है कि सभी मुक्त घूमने वाले कुत्तों को तुरंत पकड़कर सुरक्षित शेल्टरों में रखा जाए और उन्हें दोबारा सार्वजनिक स्थलों पर न छोड़ा जाए। आदेश में यह भी स्पष्ट किया गया है कि कोई व्यक्ति या संगठन इस अभियान में बाधा डालेगा तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई होगी, और जरूरत पड़ने पर बल प्रयोग भी किया जा सकता है। यह कदम उन घटनाओं के बाद आया है, जहां बच्चों और बुजुर्गों को कुत्तों के काटने और रेबीज संक्रमण के मामले सामने आए थे। अदालत ने कहा कि नागरिकों को यह भरोसा मिलना चाहिए कि वे सड़कों पर बिना डर के चल सकें।
जनवरी 2025 में भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भारत में हर साल अनुमानित 5,726 लोगों की मौत रेबीज से होती है, जिनमें से 95 प्रतिशत मामलों के लिए कुत्तों के काटने को जिम्मेदार माना गया है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कुत्तों के काटने की घटनाएं 0 से 14 वर्ष के बच्चों और 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों में अधिक दर्ज की गईं।
एक अन्य अध्ययन, जो क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजी एंड ग्लोबल हेल्थ पत्रिका में प्रकाशित हुआ, के मुताबिक भारत हर साल दुनिया के कुल रेबीज बोझ का लगभग एक-तिहाई हिस्सा वहन करता है। वर्तमान में, भारत में पशुओं की जन्म-नियंत्रण (ABC) नियमावली, जो पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के तहत आती है, के अनुसार पालतू कुत्तों की नसबंदी की जिम्मेदारी उनके मालिकों पर और Stray Dogs की नसबंदी की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन पर होती है। नसबंदी या टीकाकरण के बाद आमतौर पर इन कुत्तों को उनके मूल स्थान पर वापस छोड़ दिया जाता है।
मुख्य निर्देश
सभी स्थानीय निकायों को आठ हफ्तों में कम से कम 5,000 कुत्तों के लिए शेल्टर तैयार करने होंगे। इन शेल्टरों में नसबंदी और टीकाकरण की सुविधा होगी, पर्याप्त स्टाफ तैनात रहेगा और सीसीटीवी निगरानी अनिवार्य होगी। नोएडा और गुरुग्राम सहित पूरे दिल्ली-एनसीआर में रोज़ाना पकड़े गए कुत्तों का रिकॉर्ड रखना होगा। एक हेल्पलाइन शुरू की जाएगी, जिस पर शिकायत मिलते ही चार घंटे में कार्रवाई करनी होगी।
अदालत ने वैक्सीन की कमी का मुद्दा भी उठाया और संबंधित विभागों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी। उद्देश्य यह है कि किसी भी पीड़ित को समय पर इलाज मिल सके और रेबीज जैसी घातक बीमारी पर अंकुश लगाया जा सके।
सोशल मीडिया पर बवाल
निर्देश के बाद सोशल मीडिया पर तीखी बहस छिड़ गई है। कुछ लोग इसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए अहम कदम मान रहे हैं, जबकि कई पशु-कल्याण समर्थक इसे क्रूर और असंवेदनशील बता रहे हैं। पर्यावरण को लेकर काम करने वाली एक संस्था indianenvironmentalism.com ने अपने सोशल मीडिया पर लिखा है, शहर सहअस्तित्व (Coexistence) के प्राकृतिक सिद्धान्त को नहीं मानते। उनके लिये मनुष्य को छोड़कर बाकी सारे जीव अनुपयोगी हैं। शहर सहअस्तित्व ( Coexistence) के लिये खतरा है, इनका निर्माण की मनुष्य को केंद्र में रखकर हुआ है। बाकी जीव जंतुओं के लिये शहर अभिशाप हैं। शहरों में सिर्फ इंसान आज़ाद रह सकते हैं। बाकी जीव जंतुओं के लिये शहर एक पिंजड़ा है। हालांकि बहुत सारे लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समर्थन भी किया है।
विपक्षी नेता राहुल गांधी ने आदेश का विरोध करते हुए लिखा,
“सुप्रीम कोर्ट का दिल्ली-एनसीआर से सभी Stray Dogs को हटाने का निर्देश मानवीय और विज्ञान-आधारित दशकों पुरानी नीति से पीछे हटना है। ये बेआवाज़ प्राणी ‘समस्या’ नहीं हैं जिन्हें मिटा दिया जाए। शेल्टर, नसबंदी, टीकाकरण और सामुदायिक देखभाल से बिना क्रूरता के सड़कों को सुरक्षित रखा जा सकता है। Blanket removals क्रूर, अल्पदृष्टि वाले हैं और हमारी करुणा छीन लेते हैं। हम सार्वजनिक सुरक्षा और पशु कल्याण को साथ लेकर चल सकते हैं।”
विभिन्न प्रतिक्रियाएं
इस आदेश को लेकर समाज में मिले-जुले विचार सामने आए हैं। कुछ लोगों ने इसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए ज़रूरी कदम बताया, वहीं कई पशु-कल्याण कार्यकर्ताओं ने इसे समुदायिक कुत्तों के लिए अनुचित ठहराया।
यह सख्त निर्देश आने के बाद अब राजधानी और उसके आसपास के क्षेत्रों में सड़कों पर Stray Dogs की मौजूदगी में बड़ा बदलाव देखने को मिल सकता है, लेकिन इसके मानवीय पहलू और कार्यान्वयन की चुनौतियों पर बहस जारी रहने की संभावना है।
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