ODOP UP में कितना Successful ?

A man working to make products under ODOP initiative

उत्तर प्रदेश सरकार ने 24 जनवरी, 2018 को “एक जिला एक उत्पाद” (ODOP) योजना की शुरुआत की थी, जिसका उद्देश्य राज्य के 75 जिलों में पारंपरिक, क्षेत्रीय एवं विशेष उत्पादों को बढ़ावा देना था। इससे मिलती जुलती एक योजना चीन में बेहद सफल रही थी, इसमें “वन रीजन वन प्रोडक्ट” का कांसेप्ट था। उत्तर प्रदेश की ODOP भी कुछ इसी तरह की योजना थी और बाद में इसे केंद्र सरकार ने भी अपनाया। उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले की कुछ न कुछ विशेष खासियत रही है, ऐसे में यह योजना बेहद कारगर थी। 

ODOP योजना का मुख्य उद्देश्य स्थानीय कारीगरी और पारंपरिक शिल्प को संरक्षित कर उसका विकास करना, स्थानीय लोगों की आमदनी बढ़ाना, रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहित करना और उत्पादों को ब्रांडिंग और पैकेजिंग के ज़रिए वैश्विक बाज़ार तक पहुँचाना है। इस योजना के ज़रिए पर्यटन से भी जोड़ने का प्रयास किया गया है, ताकि पर्यटक स्थानीय उत्पादों को लाइव डेमो और आउटलेट के माध्यम से देख सकें और उन्हें खरीद सकें।

क्या सच में बदल रही है तस्वीर?

MSME Technology Development Centre in Meerut which helps with the initiative of ODOP

सरकार का दावा है कि ODOP योजना के चलते उत्तर प्रदेश से निर्यात में बढ़ोतरी हुई है। सरकारी आंकड़ों में कहा गया है कि यूपी का निर्यात 2018-19 के दौरान 16.24 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2022-23 के दौरान 21.68 बिलियन डॉलर हो गया है। लेकिन इस वृद्धि में ODOP की भूमिका कितनी रही है इसका जवाब तलाशने के लिए हम पहुँचे मेरठ, जहाँ ODOP के अंतर्गत स्पोर्ट्स आइटम्स को चुना गया है।

ज़मीनी हकीकत –  लाभ कम, जानकारी भी नहीं

मुस्कान स्पोर्ट्स चलाने वाले अक्षय जैन बताते हैं कि वे कैरम बोर्ड और बैट बनाते हैं, लेकिन ODOP योजना से उन्हें कोई विशेष लाभ नहीं मिला। उनका कहना है कि योजना को केवल नाम तक सीमित न रखकर ज़मीन पर उतारने की ज़रूरत है। सरकार को ODOP उत्पादों का प्रमोशन और स्केल-अप में सहयोग करना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि बिना कौशल वाले मज़दूर लगभग ₹10,000 प्रति माह कमाते हैं जबकि कुशल मज़दूर ₹15,000-₹20,000 तक की कमाई कर लेते हैं, लेकिन मजदूर मिलना मुश्किल हो गया है, भले ही पैसे बढ़ा दो।

अब्दुल रहीम, जो क्रिकेट से संबंधित रिटेल दुकान चलाते हैं, बताते हैं कि उनका नाम लाभार्थियों में दर्ज है, लेकिन उन्हें ODOP के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं है। उनका कारोबार जैसे पहले था वैसा ही चल रहा है।

आशुतोष यादव, जो क्रिकेट बॉल बनाते हैं, ने बताया कि उन्हें भी योजना के बारे में अधिक जानकारी नहीं है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह योजना को लेकर जागरूकता बढ़ाए और पर्यावरण प्रभाव के आकलन की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि अधिकतर निर्माण इकाइयाँ पर्यावरणीय मापदंडों को नहीं अपनातीं, और कचरे का निस्तारण भी सही तरीके से नहीं होता।

रोहित कुमार, जिन्होंने तीन साल पहले नौकरी छोड़कर स्पोर्ट्स गुड्स का काम शुरू किया, कहते हैं कि उनका काम ठीक चल रहा है लेकिन उन्होंने अब तक ODOP योजना का लाभ नहीं लिया।

कुछ कामयाब कहानियाँ भी

Centre for Industrial Promotion and Entrepreneurship Development helping with the ODOP initiative

हालांकि अधिकतर लोगों को योजना का लाभ नहीं मिला, लेकिन कुछ अपवाद ज़रूर हैं। साक्षी महाजन, एक महिला उद्यमी हैं जिन्होंने 2022 में क्रिकेट से जुड़े प्रोडक्ट्स की मैन्युफैक्चरिंग शुरू की और उन्हें ODOP योजना से सहायता मिली। उनका ऑफिस कॉर्पोरेट स्तर का है और वे अपने कर्मचारियों को भी वैसा ही ट्रीट करती हैं। उनका सपना है कि अगले पांच सालों में वे अपनी कंपनी को IPO में ले जाएँ। उनके पति अक्षय महाजन भी इस कार्य में उनके सहभागी हैं।

वैभव, एक हॉकी मैन्युफैक्चरर, ने भी योजना से लाभ मिलने की बात कही। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ODOP की जागरूकता बढ़ाने की ज़रूरत है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इससे लाभान्वित हो सकें।

इस तरह यदि देखा जाए तो ODOP योजना निश्चित रूप से एक सराहनीय पहल है, जिसने कुछ व्यवसायों को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। लेकिन 7 साल बाद भी इसकी पहुँच सीमित है और ज़्यादातर लाभार्थियों को इसके बारे में समुचित जानकारी नहीं है। ज़रूरत है योजना के प्रचार-प्रसार, प्रभावी कार्यान्वयन और स्किल डेवलपमेंट की, ताकि यह योजना केवल कागज़ों तक सीमित न रहकर वास्तव में हर ज़िले की तस्वीर बदल सके।

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