जब हम भारत के स्वास्थ्य संकट की बात करते हैं, तो सामान्य तौर पर गांवों में कुपोषण, एनीमिया, मातृ मृत्यु दर या फिर बच्चों की कम लंबाई जैसे विषयों पर चर्चा होती है। लेकिन एक और संकट चुपचाप भारत के महानगरों में अपने पाँव पसार रहा है। यह संकट है अधिक पोषण (Overnutrition) तथा चयापचयी विकारों (Metabolic Disorders) की महामारी। अभी हाल ही में नेचर पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि हैदराबाद के आईटी कर्मचारियों में 84% में Fatty Liver की बीमारी (MAFLD) और 71% में Obesity पाया गया। ये आंकड़े किसी एक शहर के नहीं, बल्कि उस तेज़ी से बढ़ते हुए शहरी भारत की पहचान हैं, जहाँ युवा पेशेवर 12-14 घंटे की डेस्क जॉब, प्रोसेस्ड फूड, Stress और अनियमित जीवनशैली के चलते एक “बीमार जीवन” जीने को विवश हैं।
शहरी जीवनशैली ने “स्वास्थ्य” को एक भ्रम में बदल दिया है। फिटनेस ऐप्स, स्मार्टवॉच और डाइट फूड की चकाचौंध में लोग यह भूल जाते हैं कि असली स्वास्थ्य संतुलित आहार, नींद और मानसिक सुकून में है, ना कि एक महंगे हेल्थ ड्रिंक में।
भारत के 40 साल से कम उम्र के बहुत सारे लोग Obesity, उच्च रक्तचाप, मधुमेह, Fatty Liver और Mental Stress के शिकार हो चुके हैं। WHO की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत जैसे विकासशील देशों में गैर-संक्रामक रोगों (NCDs) की दर तेजी से बढ़ रही है और यह युवाओं में सबसे ज्यादा देखी जा रही है।
काम की थाली में ज़हर: सर्विस सेक्टर की सच्चाई
1991 के उदारीकरण के बाद देश में सर्विस सेक्टर तेजी से बढ़ा है। विशेष रूप से आईटी सेक्टर में पिछले 3 दशकों में भारी विकास हुआ है। आईटी कंपनियाँ अक्सर “फ्री स्नैक्स”, “वर्क फ्रॉम होम” और “लचीले समय” जैसे आकर्षक दिखने वाले विकल्प देती हैं। लेकिन इसके साथ ही एक स्याह हकीकत यह भी है कि सर्विस सेक्टर के कर्मचारी बिना हिले-डुले स्क्रीन से चिपके रहते हैं, प्रोसेस्ड फूड खाते हैं, और मानसिक स्वास्थ्य से समझौता करते हैं। यह “Soft Toxicity” आधुनिक भारत की सबसे बड़ी चुनौती बन चुकी है।
Tamil Nadu से सबक
हमारे देश के कई राज्य इस दिशा में काम भी कर रहे हैं। तमिलनाडु सरकार ने अपने मक्कलाई थेडी मरुथुवम कार्यक्रम के तहत 3.7 लाख कर्मचारियों की स्वास्थ्य जांच की है और कई लोगों को समय रहते इलाज उपलब्ध कराया गया। इस पहल में एक नई बात यह है कि यह रोग के इलाज से पहले उसकी पहचान और रोकथाम को प्राथमिकता देती है। इस योजना ने राज्य में उच्च रक्तचाप और मधुमेह के प्रबंधन में सुधार दिखाया है। इस मॉडल को देशभर में अपनाए जाने की जरूरत है। विशेष रूप से हमें उन शहरों में पर ध्यान देने की जरूरत है जो आर्थिक रूप से तो तेजी से बढ़ रहे हैं, पर स्वास्थ्य के मामले में फिसल रहे हैं।
बच्चों से लेकर बुज़ुर्ग तक: Obesity एक वर्ग नहीं, देश का संकट है
भारत में एक विरोधाभासी स्थिति है। हमारे यहाँ कुपोषण और मोटापा दोनों ही एक समस्या है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के अनुसार, मोटापा और अधिक वजन अब सिर्फ “अमीरों” की बीमारी नहीं रही। गाँवों में भी यह तेजी से बढ़ रहा है। सबसे चिंताजनक बात यह है कि बच्चों में मोटापा 244% बढ़ चुका है, और द लैंसेट की एक रिपोर्ट के अनुसार 2050 तक भारत में 44 करोड़ से भी अधिक मोटे वयस्क होंगे। आज भारत में हर आठ में से एक व्यक्ति मोटापे से प्रभावित है।
यह एक जनसांख्यिकीय संकट है। इससे एक ऐसा समाज तैयार हो रहा है, जिसकी कार्यशील जनसंख्या बीमार, थकी और औसत उम्र से पहले मौत के पाठ पर अग्रसर होगी।
फिट इंडिया मूवमेंट (Fit India Movement)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 29 अगस्त 2019 को फिट इंडिया मूवमेंट की शुरुआत की थी। अभी हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने Obesity के बारे में जागरूकता बढ़ाने और स्वस्थ जीवनशैली को बढ़ावा देने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होने के लिए विभिन्न क्षेत्रों की दस प्रमुख हस्तियों को आमंत्रित किया । यह पहल फिट इंडिया मूवमेंट के साथ जुड़ी हुई है, जिसे नागरिकों को दैनिक जीवन के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में फिटनेस को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया है। नामांकित लोगों में जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, व्यवसायी आनंद महिंद्रा, नेता और अभिनेता दिनेश लाल यादव (निरहुआ), ओलंपिक पदक विजेता मनु भाकर और मीराबाई चानू, अभिनेता मोहनलाल और आर. माधवन, गायिका श्रेया घोषाल, राज्यसभा सांसद सुधा मूर्ति एवं इंफोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणी शामिल हैं। प्रत्येक नामांकित व्यक्ति को दस व्यक्तियों को नामांकित करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, जिससे अभियान की पहुंच विविध समुदायों तक बढ़ सके।
सऊदी अरब से सीखा जा सकता है
इस तरह की समस्या सऊदी अरब में भी थी। इसके समाधान के लिए सऊदी अरब सरकार ने शुगर-ड्रिंक्स पर 50% और एनर्जी ड्रिंक्स पर 100% टैक्स लगा दिया। इससे यह पता चलता है कि सरकारें यदि चाहें तो जनता की प्लेट से ज़हर हटा सकती हैं। भारत में भी ऐसा किया जा सकता है। इससे नमक, चीनी और वसा से भरे उत्पादों के उपभोग में कमी आएगी और जन स्वास्थ्य बेहतर होगा।
सोच बदलने की आवश्यकता है
हमें यह समझना होगा कि स्वास्थ्य केवल डॉक्टर की जिम्मेदारी नहीं है, यह एक सामाजिक अनुशासन है। माता-पिता से लेकर नीति निर्माताओं तक, स्कूल से लेकर वर्कप्लेस तक, हमें पोषण, व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य को सार्वजनिक चर्चा का हिस्सा बनाना होगा। भारत में कुपोषण और अधिक पोषण दोनों साथ मौजूद हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, अधिक पोषण को अक्सर ‘परेशानी’ नहीं माना जाता। आज अगर हम इस पर ध्यान नहीं देंगे, तो कल यह हमारी आर्थिक, सामाजिक और मानवीय पूँजी को निगल लेगा।
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