मानवजनित जलवायु परिवर्तन (Climate Change) से वैश्विक स्तर पर पर्यावरणीय संकट पैदा हुआ है। आज अत्यधिक गर्मी एक प्रमुख खतरा बन चुकी है। यदि आंकड़ों को देखें 2014 से 2023 तक का दशक पृथ्वी के इतिहास का सबसे गर्म दशक रहा है, जिसमें वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 425 PPM (parts per million) तक पहुंच गया है, यह औद्योगिक क्रांति से पहले के 280 PPM स्तर से लगभग 50% अधिक है। यह तथ्य Heat Action Plan की आवश्यकता और चर्चा को और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।
भारत में भी जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का प्रभाव बड़े पैमाने पर महसूस किया जा रहा है। हमारे देश में हीटवेव (Heatwaves) ने 1950-2015 के बीच औसत तापमान में 0.15 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की वृद्धि की है। गर्म दिनों एवं रातों की संख्या में भी क्रमशः सात और तीन दिनों की वृद्धि देखी गई है, और यह प्रवृत्ति 2050 तक दो से चार गुना बढ़ने की संभावना है।
हीटवेव एक गहरा संकट | Severe Heatwave Crisis
हीटवेव को एक ऐसी अवधि के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसमें असामान्य रूप से गर्म दिनों और रातों के क्रम में स्थानीय अतिरिक्त ऊष्मा एकत्रित हो जाती है। हीटवेव केवल असुविधा का कारण नहीं बनतीं, बल्कि कई स्वास्थ्य समस्याओं और मृत्यु का कारण भी बनती हैं। राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (NCDC) के आंकड़ों के अनुसार पिछले साल 1 मार्च से 20 जून, 2024 के बीच भारत में गर्मी से लगभग 200 लोगों की मृत्यु हुई और 41,000 से अधिक हीटस्ट्रोक के मामले दर्ज किए गए।
हीटवेव (Heatwave) प्रभाव में असमानता
हीटवेव का प्रभाव सभी पर समान नहीं पड़ता। बुजुर्ग, बच्चे, गर्भवती महिलाएं, निम्न आय वर्ग के गरीब लोग, असंगठित क्षेत्र के मजदूर, और वायु प्रदूषण से प्रभावित लोग इस जोखिम से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि 2030 तक हीट स्ट्रेस के कारण वैश्विक स्तर पर 5.8% कार्य घंटों की हानि होगी, जो की लगभग 3.4 करोड़ नौकरियों के बराबर है।
हिल स्टेशनों में भी बढ़ रहा है खतरा
पहाड़ों को आमतौर पर गर्मी से सुरक्षित माना जाता था, लेकिन हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य अब लगातार बढ़ते तापमान से प्रभावित हो रहे हैं। यह परिवर्तन स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि हीटवेव का प्रभाव सिर्फ मैदानी हिस्सों तक ही सीमित नहीं है। आज भारत के पहाड़ी और मैदानी दोनों ही क्षेत्र इस संकट से अछूते नहीं हैं।
गर्मी से होने वाले खतरे और स्वास्थ्य पर प्रभाव
हीटवेव से जुड़े खतरों के कारण कई स्वास्थ्य जटिलताएं हो सकती हैं, जिनमें हृदय संबंधी बीमारियां, श्वसन और गुर्दा रोग, गर्मी से होने वाली थकावट और हीटस्ट्रोक, मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव जैसी चीजें शामिल हैं। IPCC की AR6 रिपोर्ट यह बताती है कि जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न जोखिम केवल स्वास्थ्य तक सीमित नहीं हैं, बल्कि यह अर्थव्यवस्था, बुनियादी ढांचे और खाद्य सुरक्षा को भी प्रभावित करते हैं।
क्या हीट एक्शन प्लान (HAP) समाधान है
हीट एक्शन प्लान (HAP), जलवायु कार्य योजनाओं (Climate Action Plans – CAPs) का ही एक हिस्सा हैं, जो अत्यधिक गर्मी के प्रभावों को कम करने के लिए रणनीतियाँ और उपाय प्रस्तुत करते हैं। भारत में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और भारतीय मौसम विभाग (IMD), 23 राज्यों के साथ मिलकर HAPs तैयार कर रहे हैं।
HAP की विशेषताएं:
- क्षेत्रीय हीट प्रोफाइल (Heat Profile) का आकलन: पिछले हीटवेव डेटा, तापमान प्रवृत्तियों और भूमि सतह तापमान का विश्लेषण।
- संवेदनशील क्षेत्रों (Sensitive Areas) की पहचान करना: कमजोर समुदायों और क्षेत्रों की पहचान करके तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित करना।
- हीट रिस्पॉन्स रणनीतियां (Heat Response Plan): अत्यधिक गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए तत्कालीन और दीर्घकालिक उपाय करना।
भारतीय शहरों में HAPs की स्थिति:
भारत में कई शहरों ने हीट एक्शन प्लान (HAPs) अपनाए हैं, लेकिन वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों की कमी के कारण उनकी प्रभावशीलता सीमित रहती है। इसके अलावा, HAPs अक्सर स्थानीय संदर्भों में गर्मी के प्रभाव को सही तरीके से समझने में विफल रहते हैं।
कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं –
- अहमदाबाद (Ahmedabad): 2013 में भारत का पहला हीट एक्शन प्लान लागू हुआ था।
- मुंबई (Mumbai): मुंबई क्लाइमेट एक्शन प्लान (MCAP) में शहरी बाढ़, तटीय जोखिम और गर्मी को प्राथमिक मुद्दों के रूप में पहचाना गया है।
- ओडिशा (Odisha): ओडिशा स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (OSDMA) ने हीट और आर्द्रता की निगरानी के लिए मोबाइल ऐप विकसित किया है।
- दिल्ली (Delhi): पिछले ही साल 2024 में दिल्ली सरकार ने सभी सरकारी अस्पतालों में हीटस्ट्रोक मरीजों के लिए दो बिस्तर आरक्षित करने का निर्देश दिया।
हीट एक्शन प्लान्स की कमजोरियां और आवश्यक सुधार
हालांकि, भारत में कई हीट एक्शन प्लान अस्तित्व में हैं, लेकिन कई कमियां देखी गई हैं जैसे कि वित्तीय और प्रशासनिक संसाधनों की कमी, स्थानीय जलवायु परिस्थितियों के अनुकूलन में असफलता, डिजिटल और डेटा-संचालित विश्लेषण की कमी इत्यादि।
स्थानीय संदर्भों एवं जलवायु को ध्यान में रखकर हीट एक्शन प्लान (HAP) को अनुकूलित करना आवश्यक है। स्थानीय नगर पालिकाओं को हीटवेव से निपटने की रणनीति में शामिल करना चाहिए ताकि स्थानीय स्तर पर प्रभावी कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके। पिछले तापमान रुझानों के साथ उच्च-रिजोल्यूशन जलवायु प्रक्षेपण को शामिल करने से भविष्य की गर्मी घटनाओं का बेहतर अनुमान एवं प्रबंधन संभव होगा।
भवन डिजाइन और निर्माण सामग्री में बदलाव करके भी गर्मी के प्रभाव को कम किया जा सकता है। कूल रूफिंग तकनीक और हरी छतें तापमान नियंत्रण में बेहद सहायक होती हैं। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु ने कूल रूफिंग को अनिवार्य बनाने की नीति अपनाई है, जिससे गर्मी के प्रभाव को नियंत्रित करने में मदद मिल रही है। इसके अलावा भवन डिज़ाइन को भी ऐसा बनाना चाहिए जिससे तापमान नियंत्रण हो सके। हमें पश्चिमी भवन डिजाइन का मोह छोड़कर अपनी स्थानीय जरूरतों के अनुरूप भवन बनाने चाहिये।
भारत में Bharat Stage (BS) मानक वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए लागू किए गए हैं। हालांकि ये मानक सीधे गर्मी प्रबंधन को प्रभावित नहीं करते, लेकिन ये वाहनों से निकलने वाले कणीय पदार्थों और नाइट्रोजन ऑक्साइड को कम करके शहरी ताप द्वीप प्रभाव (Urban Heat Island Effect) को नियंत्रित किया जा सकता है। गर्मी के प्रभाव को कम करने के लिए हरित शहरी स्थानों का विस्तार भी आवश्यक है, जहां पेड़ों और पार्कों के माध्यम से तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है।
सभी राज्यों और नगर निगमों में हीट एक्शन प्लान को अनिवार्य रूप से लागू करना चाहिए ताकि गर्मी की घटनाओं से बचाव सुनिश्चित हो सके। राज्यों को एक दूसरे के अनुभवों से सीखना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय सरकारों को जलवायु अनुकूलन के लिए विशेष सहायता योजना (Special Assistance to States for Capital Investment) के तहत वित्तीय सहायता और विशेष ऋण प्रदान किए जाने चाहिए ताकि वे हीटवेव प्रबंधन और अनुकूलन के लिए प्रभावी कदम उठा सकें।
Do read the article on Healthy Indian Summer Beverages.