बढ़ती खपत और बढ़ता कचरा
भारत की आर्थिक प्रगति तेज़ है, लेकिन इसके साथ संसाधनों की खपत और कचरे का दबाव भी तेजी से बढ़ रहा है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, 1970 में वैश्विक स्तर पर हर साल 30.9 अरब टन संसाधनों का खनन होता था जो 2020 तक बढ़कर 95.1 अरब टन हो गया। भारत में यह खपत वैश्विक औसत से ढाई गुना ज्यादा है। इससे प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ रहा है और पर्यावरणीय संकट गहरा रहा है। ऐसे में “सर्कुलर इकॉनमी” यानी कचरे को संसाधन में बदलना अब कोई विकल्प नहीं बल्कि ज़रूरत बन गया है।
सर्कुलर इकॉनमी की दिशा में सरकारी पहल
भारत सरकार ने संसाधनों के कुशल उपयोग के लिए कई कदम उठाए हैं। 2015 में इंडियन रिसोर्स पैनल (IRP) का गठन किया गया और 2022 में नीति आयोग के अंतर्गत सर्कुलर इकॉनमी सेल की स्थापना की गई। उद्देश्य यह था कि देश धीरे-धीरे “लीनियर इकॉनमी” यानी ‘लो, बनाओ, फेंको’ मॉडल से हटकर “सर्कुलर इकॉनमी” की ओर बढ़े। कचरे को बोझ मानने के बजाय संसाधन के रूप में देखने की यह सोच सही दिशा है, लेकिन इसके रास्ते में सबसे बड़ी अड़चन खड़ी है – GST का मौजूदा ढाँचा।
क्यों बाधा बन रहा है GST?
GST की मौजूदा दरें रीसाइक्लिंग उद्योग को नुकसान पहुँचा रही हैं। धातु स्क्रैप, ई-वेस्ट, बैटरी वेस्ट और प्लास्टिक जैसे कचरे पर 18 प्रतिशत तक कर लगता है। छोटे कबाड़ी और असंगठित कारोबारी इस बोझ को वहन नहीं कर पाते और टैक्स से बचने के लिए नकद लेन-देन करते हैं। नतीजतन, कागज और काँच जैसे क्षेत्रों में 90–95 प्रतिशत कारोबार अनौपचारिक ढाँचों में हो रहा है। इसका सीधा असर सरकार की आय पर पड़ता है—हर साल लगभग 80,000 करोड़ रुपये का नुकसान केवल इसी वजह से हो रहा है।
एक और गंभीर समस्या है इनपुट टैक्स क्रेडिट की। औपचारिक रीसाइक्लिंग कंपनियाँ जब असंगठित कारोबारियों से सामग्री खरीदती हैं तो उन्हें टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं मिल पाता। कई बार झूठे बिल और फर्जी इनवॉइस भी सामने आते हैं, जिसकी वजह से ईमानदार कारोबारी भी नुकसान झेलते हैं।
नुकसान का पैमाना
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) की रिपोर्ट बताती है कि मौजूदा व्यवस्था में सरकार को हर साल लगभग 65,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। अगर यही हाल रहा तो 2035 तक यह घाटा 1.73 लाख करोड़ रुपये तक पहुँच जाएगा। यह केवल वित्तीय नुकसान नहीं है, बल्कि इसका असर पर्यावरणीय लक्ष्यों पर भी पड़ेगा। जब अनौपचारिक क्षेत्र ही मुख्य रूप से काम करेगा तो सुरक्षा, तकनीक और गुणवत्ता के मानक पूरे नहीं होंगे और कचरा प्रबंधन अव्यवस्थित ही रहेगा।
समाधान की राह
रिपोर्ट के अनुसार अगर सरकार कर दर को 18 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत करे और असंगठित क्षेत्र का आधा हिस्सा भी औपचारिक बना दे तो घाटे की जगह 62,000 करोड़ रुपये का लाभ संभव है। अगर सौ प्रतिशत औपचारिकरण हो और कर दर 12 प्रतिशत रखी जाए तो सरकार को 1.82 लाख करोड़ रुपये तक का शुद्ध फायदा होगा। यह दिखाता है कि कर दर घटाने से नुकसान नहीं बल्कि राजस्व बढ़ सकता है, बशर्ते असंगठित क्षेत्र को सही ढंग से शामिल किया जाए।
मेरी नज़र में यह सुधार केवल सरकार की आमदनी बढ़ाने तक सीमित नहीं है। यह असंगठित क्षेत्र के लाखों श्रमिकों के जीवन से भी जुड़ा है। भारत में अनुमानतः 40 लाख से अधिक लोग कबाड़ इकट्ठा करने और छाँटने जैसे कामों में लगे हैं। ये लोग बिना किसी सुरक्षा, स्वास्थ्य सुविधा या सामाजिक सुरक्षा के काम करते हैं। अगर इन्हें औपचारिक क्षेत्र में लाया जाए तो न केवल इनकी रोज़ी-रोटी सुरक्षित होगी बल्कि देश का पर्यावरणीय बोझ भी घटेगा।
कर और पर्यावरण नीति का एकीकरण
आज की सबसे बड़ी चुनौती है वित्त मंत्रालय की कर नीतियों और पर्यावरण मंत्रालय की नीतियों में तालमेल बैठाना। यदि एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रिस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) और GST को एक साथ जोड़ा जाए तो कंपनियों को यह प्रोत्साहन मिल सकता है कि वे अपने उत्पादों का कचरा औपचारिक चैनलों से ही रीसाइकल कराएँ। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि नकली ईपीआर प्रमाणपत्र जैसी गड़बड़ियाँ भी रुकेंगी।
स्थानीय स्तर पर बदलाव की ज़रूरत
शहर स्तर पर भी योजनाएँ बनानी होंगी। हर शहर में स्थानीय NGOs और रीसाइक्लिंग संगठनों के साथ मिलकर छोटे कारोबारियों को प्रशिक्षण, ऋण और तकनीक उपलब्ध कराई जाए। छोटे रीसाइक्लरों के लिए कॉमन फैसिलिटी सेंटर (CFC) बनाए जाएँ, जहाँ साझा मशीनरी और संसाधनों का उपयोग करके वे उच्च गुणवत्ता का रीसाइकल्ड उत्पाद बना सकें। इससे इनकी आय भी बढ़ेगी और सरकार को टैक्स का नुकसान भी कम होगा।
आगे का रास्ता
स्पष्ट है कि मौजूदा GST ढाँचा रीसाइक्लिंग और सर्कुलर इकॉनमी के रास्ते में बाधा है। यदि समय रहते सुधार नहीं किया गया तो भारत को भारी वित्तीय नुकसान उठाना पड़ेगा और साथ ही सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करना भी मुश्किल हो जाएगा। लेकिन यदि सरकार ने साहसिक कदम उठाए तो यह सुधार न केवल कर संग्रह को मज़बूत करेगा बल्कि लाखों असंगठित श्रमिकों को सम्मानजनक जीवन देगा और पर्यावरणीय संकट को भी कम करेगा। GST सुधार केवल आर्थिक सुधार नहीं बल्कि एक सामाजिक और पर्यावरणीय क्रांति साबित हो सकता है।
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