अज़रबैजान में COP29 का आरंभ: जलवायु संकट समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

COP29 का आयोजन इस बार अज़रबैजान की राजधानी बाकू में हो रहा है। लगभग 200 देशों के प्रतिनिधि, व्यापारिक नेता, जलवायु वैज्ञानिक, स्वदेशी समुदायों के लोग, पत्रकार, और विभिन्न विशेषज्ञ इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने के लिए एक साझा योजना तैयार करना और विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायता के लिए वित्तीय सहयोग बढ़ाना है।

COP का महत्त्व और चुनौतियाँ

COP, या Conference of Parties, संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन का सर्वोच्च मंच है, जो 1992 में हस्ताक्षरित UNFCCC समझौते पर आधारित है। इस संधि का उद्देश्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करना है ताकि मानव गतिविधियों के कारण हो रहे जलवायु पर नकारात्मक प्रभावों को रोका जा सके। हर वर्ष, COP बैठक का लक्ष्य होता है कि सदस्य देश एकजुट होकर उन ठोस कदमों पर चर्चा करें जिनसे वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित किया जा सके।

फिर भी, अब तक हुए सभी COP सम्मेलनों की सबसे बड़ी आलोचना यह रही है कि विकसित देशों द्वारा वादा किया गया वित्तीय सहयोग विकासशील देशों को अभी तक पूरा नहीं मिला है। 2009 में विकसित देशों ने यह वादा किया था कि वे 2020 तक हर साल $100 बिलियन जुटाकर विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मदद देंगे। लेकिन आज, 2024 में भी, इस वादे को पूरी तरह निभाया नहीं गया है। ऐसे में COP29 का मंच एक बार फिर इस महत्वपूर्ण वित्तीय जरूरत की ओर ध्यान आकर्षित करता है।

जलवायु वित्त का महत्व और अपूर्ण वादे

COP29 में सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक जलवायु वित्त है। 2009 में, जब संपन्न देशों ने विकासशील देशों की सहायता के लिए $100 बिलियन प्रतिवर्ष जुटाने का वादा किया था, उस समय इसे एक बड़ा कदम माना गया था। लेकिन आज की वास्तविकता यह है कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अनुमानतः 2030 तक सालाना $6 ट्रिलियन की आवश्यकता है। यह राशि उस वादे से कहीं अधिक है जो विकसित देशों ने 2009 में किया था।

यह चिंताजनक है कि जब जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव विकासशील देशों पर पड़ रहा है, तब भी वे वित्तीय सहायता के लिए संपन्न देशों की ओर देख रहे हैं। COP जैसे मंच पर यह जरूरी है कि यह मुद्दा सशक्त रूप से उठाया जाए और समाधान के ठोस रास्ते निकाले जाएं ताकि इन देशों को आवश्यक वित्तीय और तकनीकी सहयोग मिल सके।

ठोस कदम और जवाबदेही की आवश्यकता

क्योटो प्रोटोकॉल और पेरिस समझौते जैसे ऐतिहासिक निर्णयों के बावजूद, वास्तविक कार्यान्वयन की धीमी गति COP प्रयासों पर सवाल उठाती है। उदाहरण के लिए, COP26 में, कोयले के उपयोग को “phase out” करने का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे बाद में कमजोर करके “phase down” कर दिया गया। COP29 में उम्मीद है कि पिछले असफलताओं से सबक लेकर ठोस और बाध्यकारी निर्णय लिए जाएं।

हमारे सामने एक बड़ा सवाल है — क्या COP29 में केवल नए वादे होंगे या फिर उन वादों को पूरा करने के लिए ठोस कार्यवाही भी होगी? पिछले अनुभवों से यह स्पष्ट है कि ठोस कार्यान्वयन के बिना कोई भी योजना कारगर साबित नहीं हो सकती। COP29 का यह मौका है कि हम केवल भाषणों और घोषणाओं से आगे बढ़कर ऐसी नीतियाँ बनाएं जिनका वास्तविक प्रभाव हो।

जलवायु न्याय: एक नैतिक ज़िम्मेदारी

जलवायु वित्त और उत्सर्जन लक्ष्यों पर चर्चा के अलावा, जलवायु न्याय का मुद्दा भी इस शिखर सम्मेलन का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए। जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक प्रभाव उन देशों पर पड़ रहा है, जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से इसमें सबसे कम योगदान दिया है। जैसे कि दक्षिण एशिया, सब-सहारन अफ्रीका, और लैटिन अमेरिका के देश जलवायु संकट की गंभीर मार झेल रहे हैं, जबकि इसका कारण अधिकतर औद्योगिक देशों के प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन हैं। COP29 में जलवायु कार्रवाई में इस असमानता को पहचानना और प्रभावित देशों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।

आगे की राह

COP29 के दौरान, दुनिया एक ओर उम्मीद से देख रही है कि ठोस निर्णय लिए जाएं और दूसरी ओर पुरानी अधूरी प्रतिज्ञाओं के पूरे होने की भी उम्मीद कर रही है। अज़रबैजान में हो रहा यह सम्मेलन एक महत्वपूर्ण अवसर है जिसमें सभी देश अपने वादों को न केवल दोहराएं, बल्कि उन पर ठोस कार्रवाई करें और एक ऐसी योजना बनाएँ जिसका कार्यान्वयन तुरंत शुरू हो सके।

भारत जैसे देशों के लिए, जो तेजी से विकास कर रहे हैं, जलवायु वित्त और तकनीकी सहयोग की अत्यधिक आवश्यकता है। भारत और अन्य विकासशील देशों की प्राथमिकताएँ COP29 जैसे मंचों पर सुनी जानी चाहिए, ताकि जलवायु संकट का समाधान सभी के हित में हो। COP29 को यह सिद्ध करना होगा कि जलवायु संकट का समाधान सभी के सहयोग, विशेषकर कमजोर देशों की मदद और एक स्थायी भविष्य के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता से ही संभव है। अगर COP29 इन मुद्दों पर ठोस प्रगति कर सका, तो यह वास्तव में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top