2019 की तुलना में 2024 के नतीजे
2019 के चुनावों में एससी आरक्षित 17 सीटों में से भाजपा ने 5 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 7, जजपा ने 4 और 1 सीट निर्दलीय उम्मीदवार के खाते में गई थी। इस बार 2024 के चुनावों में भाजपा ने अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए 8 सीटों पर कब्जा जमाया है, जबकि कांग्रेस ने 9 सीटों पर जीत दर्ज की है। जजपा, जो पिछली बार 4 सीटें जीतने में सफल रही थी, इस बार एक भी सीट पर जीत हासिल नहीं कर सकी है।
भाजपा की रणनीति: उम्मीदवारों में बदलाव और एंटी-इंकम्बेंसी से निपटना
भाजपा ने 2024 चुनावों में अपने उम्मीदवारों को बदलने पर विशेष ध्यान दिया। पार्टी ने कुल 60 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवारों को बदला, ताकि सरकार विरोधी लहर (एंटी-इंकम्बेंसी) को कम किया जा सके। यह रणनीति एससी आरक्षित सीटों पर काम करती नजर आई, जहां पार्टी ने 2019 की तुलना में 3 सीटों की बढ़ोतरी की।
कांग्रेस की स्थिरता और चुनौती
दूसरी ओर, कांग्रेस ने एससी वोटरों के बीच अपनी स्थिति को बनाए रखा। 2019 में 7 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद, इस बार कांग्रेस ने अपनी स्थिति को और मजबूत करते हुए 9 सीटों पर जीत दर्ज की है। यह कांग्रेस की मजबूत जमीनी पकड़ और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर जोर का परिणाम है।
जजपा और अन्य का हाशिए पर जाना
जजपा, जिसने 2019 में एससी आरक्षित सीटों पर 4 सीटें जीती थीं, इस बार पूरी तरह से हाशिए पर चली गई है। जजपा के वोट बेस में गिरावट और गठबंधन के मुद्दों के कारण पार्टी को नुकसान झेलना पड़ा। निर्दलीय उम्मीदवार, जो 2019 में 1 सीट जीतने में सफल रहे थे, इस बार किसी भी सीट पर अपनी छाप नहीं छोड़ सके।
निष्कर्ष
हरियाणा विधानसभा चुनाव 2024 में एससी आरक्षित सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर रही। भाजपा ने जहां उम्मीदवार बदलकर और एंटी-इंकम्बेंसी से निपटकर अपने वोट प्रतिशत में इजाफा किया, वहीं कांग्रेस ने अपनी स्थिरता बनाए रखते हुए बेहतर प्रदर्शन किया। जजपा और निर्दलीय उम्मीदवारों के लिए यह चुनाव निराशाजनक साबित हुआ। इस बार के नतीजे साफ तौर पर दिखाते हैं कि एससी आरक्षित सीटों पर भाजपा और कांग्रेस की राजनीति मुख्यधारा में है, जबकि अन्य पार्टियों को पुनर्विचार की जरूरत है।