झारखंड विधानसभा चुनाव 2024: सत्ता संघर्ष और अहम मुद्दों के बीच किसकी होगी जीत?

झारखंड में विधानसभा चुनाव 2024 की तैयारियां जोरों पर हैं। राज्य के राजनीतिक परिदृश्य में प्रमुख दलों भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल रही है। गठबंधन और असहमति की राजनीति, आदिवासी पहचान, भ्रष्टाचार, बुनियादी ढांचे की कमी, और जमीनी मुद्दे इस चुनाव में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं।

राज्य की सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि

झारखंड का गठन 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग करके किया गया था। “जंगलों की धरती” के नाम से मशहूर यह राज्य भारत के पूर्वी हिस्से में स्थित है। 24 जिलों और 5 संभागों – पलामू, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर, कोल्हान और संथाल परगना में बंटा हुआ यह राज्य राजनीतिक अस्थिरता के लिए भी जाना जाता है। अब तक यहां 11 बार सरकारें बदली हैं और 3 बार राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है। पिछले चुनाव में, हेमंत सोरेन के नेतृत्व में जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने सत्ता संभाली थी, परंतु हाल ही में पार्टी में टूट और चंपई सोरेन का भाजपा में जाना गठबंधन के लिए चुनौतीपूर्ण बन सकता है।

वोट बैंक का गणित और चुनौतियां

पिछले कुछ चुनावों में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदायों के बीच ध्रुवीकरण देखा गया है। भाजपा ने हाल के चुनावों में गैर-आदिवासी और ओबीसी वोटों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की है, जबकि जेएमएम-कांग्रेस गठबंधन ने आदिवासी पहचान और स्थानीयता पर जोर देकर अपना परंपरागत समर्थन बनाए रखने का प्रयास किया है। 2024 के लोकसभा चुनावों में, भाजपा को राज्य में सबसे ज्यादा वोट मिले, परंतु अनुसूचित जनजाति की सीटों पर वह विफल रही। इस बार भी, भाजपा और जेएमएम-कांग्रेस दोनों की निगाहें आदिवासी मतदाताओं पर टिकी हैं, जो राज्य की 26.2% आबादी हैं।

मुख्य चुनावी मुद्दे
  1. आदिवासी पहचान और सरना धर्म कोड की मांग

आदिवासी समुदाय के लिए सरना धर्म कोड का मुद्दा प्रमुख बन गया है। जेएमएम ने इस मांग को समर्थन देकर आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में लाने की कोशिश की है। यह मांग आदिवासी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान को मजबूत करती है और राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

  1. बुनियादी ढांचे और विकास की समस्याएं

झारखंड के ग्रामीण इलाकों में बिजली कटौती, पेयजल की कमी, बेरोजगारी, और सिंचाई सुविधाओं का अभाव बड़े मुद्दे हैं। पलामू संभाग में पानी की भारी कमी और सूखा प्रभावित क्षेत्र होने के कारण किसानों की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। इस क्षेत्र में बुनियादी सुविधाओं की कमी ने भाजपा, जेएमएम और कांग्रेस को चुनावी वादों के जरिए लोगों का समर्थन पाने के लिए बाध्य किया है।

  1. भ्रष्टाचार और अवैध खनन का मुद्दा

झारखंड के खनिज संसाधनों का अवैध खनन और उससे जुड़े भ्रष्टाचार ने जनता में असंतोष को जन्म दिया है। कोयला, पत्थर और अन्य खनिज संसाधनों का अवैध दोहन और सरकारी अधिकारियों पर भ्रष्टाचार के आरोप, खासकर जेएमएम-कांग्रेस सरकार पर, भाजपा के लिए चुनावी फायदे का जरिया बन सकते हैं।

  1. यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) और ओबीसी आरक्षण

भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में कहा है कि वह सत्ता में आने पर राज्य में यूसीसी लागू करेगी, जिसमें आदिवासियों को बाहर रखा जाएगा। इसके अलावा, ओबीसी आरक्षण को 27% तक बढ़ाने का वादा भी भाजपा ने किया है, जिससे उसे ओबीसी और गैर-आदिवासी मतदाताओं का समर्थन मिलने की संभावना है।

  1. कानून-व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा

राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध में वृद्धि और खराब कानून-व्यवस्था भी चुनाव का एक अहम मुद्दा बन चुकी है। इस दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 29% और बलात्कार के मामलों में 45% की वृद्धि दर्ज की गई है, जिससे राज्य में सुरक्षा की स्थिति को लेकर जनता में नाराजगी है।

क्षेत्रीय परिदृश्य: पलामू और अन्य संभागों का राजनीतिक प्रभाव

पलामू संभाग, जहां 9 विधानसभा सीटें हैं, मुख्यतः सूखे और सिंचाई की समस्याओं से प्रभावित है। पिछले चुनावों में इस क्षेत्र में भाजपा को समर्थन मिला था, परंतु अब विकास की कमी और अन्य मुद्दों के चलते इस क्षेत्र में सभी पार्टियों को जनता का विश्वास हासिल करने में मेहनत करनी होगी। इस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और किसान समस्याएं चुनावी बहस का हिस्सा हैं, जिन्हें अनदेखा नहीं किया जा सकता।

चुनाव की राह और संभावित परिणाम

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 में सत्ता के संघर्ष का यह मोड़ कई कारकों पर निर्भर करेगा। आदिवासी बनाम गैर-आदिवासी राजनीति, भ्रष्टाचार, बुनियादी ढांचे की कमी और पहचान की राजनीति से जुड़ी चर्चाओं के बीच मतदाता अपने प्रतिनिधियों का चुनाव करेंगे। भाजपा के पास लोकसभा चुनाव में 44.6% वोट शेयर होने के बावजूद आदिवासी इलाकों में कमजोरी रही है। वहीं, जेएमएम-कांग्रेस ने अपने गठबंधन के जरिए आदिवासी वोटों पर मजबूत पकड़ बनाई है, लेकिन चंपई सोरेन जैसे बड़े आदिवासी नेता का भाजपा में जाना उनकी रणनीति को चुनौती दे सकता है।

झारखंड विधानसभा चुनाव 2024 राज्य के भविष्य के लिए एक निर्णायक पल साबित हो सकता है। इस बार का चुनाव सिर्फ सत्ता बदलने का नहीं, बल्कि आदिवासी पहचान, भ्रष्टाचार के आरोपों और विकास के मुद्दों पर जनता के फैसले का प्रतीक बन सकता है। जनता के मन में यह सवाल बना हुआ है कि क्या वे एक नई दिशा की ओर बढ़ेंगे, या वर्तमान सरकार को ही एक और मौका देंगे। आने वाले समय में देखना होगा कि झारखंड की जनता किसे अपनी सेवा के लिए चुनती है और किसके हाथ में राज्य की बागडोर सौंपती है।

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