Solar Energy के Bright भविष्य की छाया

Solar Energy

भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में तीव्र गति से आगे बढ़ रहा है। 110 गीगावॉट से अधिक की स्थापित Solar क्षमता और 500 मेगावॉट से अधिक के मेगा सोलर पार्कों की योजना के साथ देश ने स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में उल्लेखनीय प्रगति की है। लेकिन इसके साथ ही एक नया पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हो रहा है यह संकट सोलर वेस्ट का संकट है। इसी संदर्भ में, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने 4 जून 2025 को Solar पैनलों और मॉड्यूल्स के निष्प्रयोग (end-of-life) के बाद उनके सुरक्षित भंडारण, हैंडलिंग और परिवहन हेतु विस्तृत मसौदा दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये दिशा-निर्देश भारत की ई-वेस्ट (प्रबंधन) नियमावली, 2022 के तहत बनाए गए हैं।

Solar कचरे की पहचान और विनियमन की आवश्यकता

ई-वेस्ट नियमावली के अध्याय V के अंतर्गत, Solar पीवी कचरे को ‘CEEW 14’ श्रेणी के इलेक्ट्रॉनिक कचरे के रूप में वर्गीकृत किया गया है। यह वर्गीकरण EEE (इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट) कोड में विस्तारित निर्माता दायित्व (Extended Producer Responsibility – EPR) ढांचे के अंतर्गत आता है। हालाँकि, अन्य ई-कचरे की तुलना में Solar कचरे पर EPR के पुनर्चक्रण लक्ष्य लागू नहीं होते, फिर भी उत्पादकों, निर्माताओं और पुनर्चक्रणकर्ताओं को पंजीकरण, भंडारण अनुमति (2034-35 तक), वार्षिक रिटर्न, तथा CPCB की मानक संचालन प्रक्रियाओं का पालन करना अनिवार्य है।

प्रमुख पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम

Solar पैनलों में सीसा, कैडमियम, आर्सेनिक, एंटीमनी, सेलेनियम, कॉपर, सिल्वर, गैलियम, टेल्यूरियम और टिन जैसे भारी धातु पाए जाते हैं। यदि इन्हें वैज्ञानिक पद्धति से नष्ट नहीं किया गया, तो ये मिट्टी और जल स्रोतों को दूषित कर सकते हैं, इनसे अनियंत्रित जलन से जहरीली गैसें निकलती हैं, जिससे वायु गुणवत्ता बिगड़ती है तथा स्थानीय समुदायों और कचरा प्रबंधन से जुड़े श्रमिकों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा हो सकता है।

दिशा-निर्देशों के प्रमुख बिंदु

उत्पादकों की ज़िम्मेदारी: Solar पैनलों के निष्प्रयोग (end-of-life) के पश्चात उनके सुरक्षित निपटान के लिए उत्पादकों को उपभोक्ताओं एवं बड़े उपयोगकर्ताओं से Solar कचरा वापस लेने हेतु एक प्रभावी कलेक्शन सिस्टम बनाना अनिवार्य किया गया है। इसके लिए उन्हें अपनी वेबसाइट पर आवश्यक जानकारियाँ जैसे हेल्पलाइन नंबर, कलेक्शन प्वाइंट्स और अधिकृत पुनर्चक्रण केंद्रों की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करानी होगी। साथ ही, उपभोक्ताओं के डाटाबेस को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया गया है, ताकि जैसे ही Solar पैनल अपनी उपयोग अवधि पूरी कर लें, उन्हें समय पर एकत्रित कर पुनर्चक्रण की प्रक्रिया में लाया जा सके।

भंडारण की शर्तें: दिशानिर्देशों के अनुसार, Solar पैनलों को ऐसे स्थानों पर संग्रहित किया जाना चाहिए जो पूरी तरह से सूखे, ढंके और हवादार हों, जिससे नमी से होने वाले नुकसान से बचा जा सके। इन स्थानों में जलरोधक और रासायनिक रूप से अचंनीय फर्श का होना आवश्यक है ताकि किसी भी भारी धातु के रिसाव से भूजल या मिट्टी को प्रदूषित होने से रोका जा सके। पैनलों को अधिकतम 2 मीटर ऊंचाई या 20 परतों तक ही रखा जा सकता है ताकि अधिक भार से उनकी संरचना को कोई क्षति न पहुँचे। भंडारण स्थलों में आग से सुरक्षा के पर्याप्त उपाय, आपातकालीन निकासी व्यवस्था और एक स्पष्ट आपात प्रतिक्रिया योजना होना अनिवार्य किया गया है। साथ ही, प्रत्येक टन Solar कचरे के लिए न्यूनतम 19.5 घन मीटर स्थान की व्यवस्था अनिवार्य रूप से करनी होगी।

परिवहन नियम: Solar कचरे का परिवहन केवल ढके हुए ट्रकों के माध्यम से किया जाना चाहिए ताकि परिवहन के दौरान कचरा वातावरण में न फैले। यदि Solar कचरे का अंतिम निपटान किया जा रहा है, तो इसके लिए “Hazardous and Other Wastes (Management and Transboundary Movement) Rules, 2016 का पूर्ण पालन करना अनिवार्य होगा, ताकि किसी भी प्रकार के खतरनाक प्रभावों से पर्यावरण और जनस्वास्थ्य को सुरक्षित रखा जा सके।

पुनर्चक्रण की संभावना

Solar पैनलों में पाए जाने वाले ग्लास, एल्युमीनियम फ्रेम, सिलिकॉन वेफर, प्लास्टिक और धातुएं काफी मात्रा में पुनः उपयोग योग्य होती हैं। वैज्ञानिक विधियों द्वारा इन्हें पुनर्चक्रण कर मूल्यवान संसाधनों को दोबारा प्रयोग में लाया जा सकता है, जिससे नई खुदाई की आवश्यकता कम होती है,न ऊर्जा की बचत होती है तथा पर्यावरणीय दबाव कम होता है।

भविष्य की दिशा 

इन दिशा-निर्देशों का क्रियान्वयन भारत को Solar ऊर्जा के क्षेत्र में स्थायी विकास की दिशा में ले जाएगा। यह सुनिश्चित करेगा कि नवीकरणीय ऊर्जा की सफलता प्रदूषण मुक्त तकनीक से हो, न कि एक और पर्यावरणीय संकट के निर्माण से। साथ ही, CPCB ने जनता से इन दिशानिर्देशों पर प्रतिक्रिया और सुझाव आमंत्रित किए हैं, जो नीति निर्माण में सहभागी दृष्टिकोण को दर्शाता है। जैसे-जैसे भारत 2030 तक 280 गीगावॉट की Solar क्षमता के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है, वैसे-वैसे यह दिशानिर्देश देश को यह सुनिश्चित करने में मदद करेंगे कि Solar ऊर्जा का लाभ, कचरे के अभिशाप में न बदले। इन दिशा-निर्देशों के प्रभावी क्रियान्वयन से भारत एक हरित, सुरक्षित और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य की ओर अग्रसर होगा।

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