हाल ही में आंध्र प्रदेश के प्रकासम ज़िले के ओंगोल गांव की एक गाय ने दुनिया भर में सनसनी फैला दी है। फरवरी 2025 में ब्राज़ील में हुई एक नीलामी में Ongole Cow को 41 करोड़ रुपये में बेचा गया, जिससे यह दुनिया की सबसे महंगी गाय बन गई। इस सौदे ने भारतीय मवेशी उद्योग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना दिया है और ओंगोल नस्ल की दुर्लभ विशेषताओं की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। पशुधन हमेशा से ही भारतीय परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है और इस खबर ने अब पूरी दुनिया का ध्यान भारतीय गायों के प्रति खींचा है।
Ongole Breed की विशेषता क्या है
ओंगोल नस्ल के बैल एवं गाय अपनी ताकत, सहनशक्ति तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए प्रसिद्ध हैं। इनका सफेद रंग, सुडौल शरीर और लालिमा लिए चेहरा इन्हें बाकी नस्लों से अलग बनाता है। ये बेहद गर्म और कठिन परिस्थितियों में भी जीवित रह सकते हैं तथा खेती के कामों में इनकी उपयोगिता वर्षों से साबित हो चुकी है। एक ऐसे समय में जब ग्लोबल वार्मिंग एक बड़ी समस्या बनती जा रही है ये ओंगोल नस्ल के पशु एक बड़े समाधान हो सकते हैं। कई कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, ओंगोल नस्ल के बैल एक बार में पांच से छह एकड़ ज़मीन जोत सकते हैं। इनकी मजबूती और फुर्ती इन्हें कठिन परिश्रम के लिए उपयुक्त बनाती है। औसतन एक ओंगोल गाय का वजन 1100 से 1200 किलोग्राम तक होता है और इसकी मांसपेशियां बेहद मजबूत होती हैं।
कैसे पहुंची Ongole Breed Brazil?
ओंगोल नस्ल की कहानी 1960 के दशक से शुरू होती है, जब पोलावरापू चेंचूरामैया नाम के एक किसान ने इस नस्ल के एक सांड और एक गाय को ब्राज़ील के एक व्यापारी को बेचा। उस समय इस सौदे की कीमत मात्र 60,000 रुपये थी। लेकिन ब्राज़ील ने इस नस्ल की क्षमता को समझा और उसके सीमेन (वीर्य) को संरक्षित कर इस नस्ल को अपने देश में विकसित किया। वर्तमान समय में, ब्राज़ील में 80 प्रतिशत से अधिक मवेशी ओंगोल नस्ल से संबंधित हैं। इस नस्ल को वहां ‘वियातिना-19’ के नाम से जाना जाता है और यह ब्राज़ील के मांस उद्योग की रीढ़ बन चुकी है।
Brazil में इतनी ऊंची कीमत क्यों?
ब्राज़ील में ओंगोल नस्ल की गायों और बैलों की इतनी ऊंची कीमत मिलने की प्रमुख वजह उनके मांस की गुणवत्ता है। ओंगोल नस्ल का मांस उच्च प्रोटीन और कम वसा वाला होता है, जो स्वास्थ्य के प्रति जागरूक उपभोक्ताओं के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है। पशु विज्ञान विशेषज्ञों का कहना है कि, “ओंगोल नस्ल के बैलों को कम लागत पर पाला जा सकता है और उनका मांस गुणवत्ता में बेहतरीन होता है। ब्राज़ील में इनका उपयोग बड़े पैमाने पर मांस उत्पादन के लिए किया जाता है, जिससे वहां इस नस्ल की मांग तेजी से बढ़ी है।”
भारत में घटती Ongole Breed गायों की संख्या
हालांकि ओंगोल नस्ल की यह सफलता विदेशों में देखने को मिल रही है, लेकिन भारत में इस नस्ल की स्थिति उतनी संतोषजनक नहीं है। खेती में मशीनीकरण और ट्रैक्टरों के बढ़ते उपयोग के कारण बैलों की आवश्यकता कम हो गई है। किसान अब खेतों में बैलों की बजाय ट्रैक्टरों का उपयोग कर रहे हैं, जिससे ओंगोल नस्ल के मवेशियों की मांग में कमी दर्ज की गयी है।
कई किसान जो पिछले कई दशकों से खेती कर रहे हैं, बताते हैं कि “पहले बैलों से खेत जोतना सामान्य बात थी, लेकिन अब ट्रैक्टरों ने उनकी जगह ले ली है। इससे ओंगोल नस्ल की मांग घटने लगी है और किसानों ने इन्हें पालना बंद कर दिया है।”
सरकार की ओर से प्रयास जरूरी
ओंगोल नस्ल को संरक्षित करने और इसके महत्व को फिर से स्थापित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ठोस कदम उठाने होंगे। इसके अलावा इस काम के लिए समाज को भी आगे आना चाहिए। हालांकि इस दिशा में कुछ प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह प्रयास पर्याप्त नहीं हैं।कई कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में ओंगोल नस्ल के संरक्षण और संवर्धन के लिए ब्राज़ील जैसे देशों से सीख लेनी चाहिए। वहां इस नस्ल के संरक्षण और उपयोग में व्यापक शोध और योजनाबद्ध तरीके से काम किया गया है। भारत में भी इस तरह के अनुसंधान और संरक्षण कार्यक्रमों की जरूरत है।
भविष्य की अपार संभावनाएं
यदि भारत इस नस्ल के संरक्षण पर ध्यान देता है, तो ओंगोल नस्ल को पुनर्जीवित कर दुग्ध और मांस उत्पादन में क्रांति लाई जा सकती है। इसके अलावा, मांस और दुग्ध उत्पादन के अलावा, यह नस्ल जैविक खेती में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जिससे देश की कृषि अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलेगी। इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि यह नस्ल ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने में भी सक्षम है। इसलिए अब वक्त आ गया है कि भारत ओंगोल नस्ल के संरक्षण पर गंभीरता से विचार करे और इस गौरवशाली नस्ल को भविष्य की पीढ़ियों के लिए बचाए। अगर सही रणनीति अपनाई जाए, तो यह भारतीय नस्ल फिर से विश्व मंच पर अपना परचम लहरा सकती है।
Do read article on Rich Legacy of Sambhalpuri Saree!