India में 16 साल बाद होने वाली जनगणना क्यों है Important

India में 16 साल बाद होने वाली जनगणना क्यों है Important

देश में जनगणना की तिथियाँ घोषित हो चुकी हैं। भारत में census एक बार फिर से होने जा रही है, और इस बार यह कई मायनों में ऐतिहासिक होगी। 16 वर्षों के अंतराल के बाद देश की जनसंख्या, सामाजिक ढाँचे और आर्थिक हालात की तस्वीर दोबारा तैयार की जाएगी। गृह मंत्रालय द्वारा हाल ही में घोषित किया गया कि आगामी जनगणना की संदर्भ तिथि 1 मार्च 2027 होगी। इस बार की जनगणना को लेकर कई अनोखे पहलुओं पर चर्चा हो रही है, जैसे डिजिटल प्रक्रिया, पहली बार जातिगत आंकड़े, और परिसीमन के संभावित प्रभाव।

क्या है जनगणना और क्यों होती है ज़रूरी?

Census सिर्फ आंकड़ों का संग्रह नहीं होती, यह एक राष्ट्र की सामाजिक और आर्थिक तस्वीर होती है। इसमें यह जाना जाता है कि देश में कौन रह रहा है, उनकी उम्र, शिक्षा, व्यवसाय, भाषा, धर्म, रहन-सहन, और सामाजिक स्थिति क्या है। इस प्रक्रिया से सरकार को यह तय करने में मदद मिलती है कि कौन से वर्ग को कौन सी योजना की आवश्यकता है, और कैसे संसाधनों का वितरण किया जाए। भारत में पहली बार जनगणना 1872 में हुई थी, जबकि स्वतंत्र भारत की पहली आधिकारिक census 1951 में कराई गई थी। सामान्यतः हर 10 साल में यह प्रक्रिया दोहराई जाती है। पिछली जनगणना 2011 में हुई थी और 2021 की जनगणना कोविड-19 के कारण स्थगित हो गई थी।

इस बार क्या-क्या नया है?

इस बार की census कई मायनों में ऐतिहासिक होने जा रही है। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि यह पहली बार पूरी तरह डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आधारित होगी, जिसमें मोबाइल ऐप और पोर्टल्स के ज़रिए आंकड़े जुटाए जाएंगे। इससे census की प्रक्रिया अधिक तेज़, पारदर्शी और किफायती हो जाएगी। इसके अतिरिक्त, आज़ादी के बाद पहली बार सभी जातियों का विवरण भी दर्ज किया जाएगा। अभी तक केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की गिनती की जाती थी, लेकिन अब प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जाति बताने का विकल्प मिलेगा, जिससे सामाजिक संरचना की अधिक समग्र समझ बन सकेगी। जनगणना की प्रक्रिया दो चरणों में पूरी की जाएगी। पहला चरण 1 अक्टूबर 2026 से उन क्षेत्रों में शुरू होगा जो बर्फ़बारी से प्रभावित होते हैं जैसे लद्दाख, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, जबकि शेष भारत में यह प्रक्रिया 1 मार्च 2027 से आरंभ की जाएगी।

जनगणना से जुड़े राजनीतिक और सामाजिक मुद्दे

इस बार की census के आंकड़े महिला आरक्षण कानून और नई परिसीमन प्रक्रिया के लिए अहम होंगे। 2023 में पारित महिला आरक्षण कानून के अनुसार, संसद और विधानसभाओं में 33% सीटें महिलाओं को दी जाएंगी, लेकिन यह लागू तभी होगा जब नई जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाए। परिसीमन की प्रक्रिया को लेकर दक्षिण भारत के कुछ राज्यों की चिंताएं रही हैं। जनसंख्या वृद्धि की दर उत्तर भारत में अपेक्षाकृत अधिक रही है, जिससे दक्षिणी राज्यों को डर है कि उनकी सीटें कम हो सकती हैं।

बजट और तैयारी की स्थिति

2025 के बजट में जनगणना के लिए ₹574.80 करोड़ का प्रावधान किया गया है, जबकि पहले यह राशि 3,700 करोड़ से अधिक थी। मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि धनराशि की कमी census में बाधा नहीं बनेगी। कोविड-19 के बाद दुनियाभर के कई देशों को जनगणना की गुणवत्ता को लेकर दिक्कतें आई थीं, इसलिए भारत सरकार ने इसे स्थगित कर तैयारी को और मजबूत किया है।

आगे क्या?

2027 में होने वाली यह जनगणना आने वाले दो दशकों की नीतियों, योजनाओं और चुनावी भूगोल को गहराई से प्रभावित करेगी। खासकर जातिगत डेटा के आने से सामाजिक न्याय और आरक्षण की बहसें एक नए मोड़ पर पहुंचेंगी। यह कहना गलत नहीं होगा कि यह जनगणना केवल एक आंकड़ा संग्रह नहीं, बल्कि भारत की राजनीतिक और सामाजिक दिशा तय करने वाला युगांतकारी कदम बन सकती है।

जनगणना पर लिखा Caste Census 2025: Social Justice or Identity Politics? (हिंदी) का आर्टिकल पढ़े |

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