23 जून को श्यामा प्रसाद मुखर्जी की पुण्यतिथि है। वो एक ऐसे राष्ट्रनायक थे है जिन्होने संविधान, कश्मीर और राष्ट्रीय एकता के मुद्दों पर न सिर्फ विचारधारा गढ़ी, बल्कि उसके लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए। उन्होने यह ऐलान किया था, “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे।” उनकी पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं उनके जीवन, संघर्ष और उस विचारधारा को, जो आज भी भारत की राजनीति और राष्ट्रीय सोच का आधार बनी हुई है।
श्यामा प्रसाद मुखर्जी बचपन से ही असाधारण रहे

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ। उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी शिक्षा के क्षेत्र में एक महान हस्ती थे। उसी घर में डॉ. मुखर्जी को विद्या, तर्क और राष्ट्रभक्ति का गहरा संस्कार मिला। उन्होंने 1923 में बंगाली में M.A., 1924 में LLB और 1926 में इंग्लैंड से लॉ की डिग्री प्राप्त की। 1934 में वे कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे युवा कुलपति बने। वहां उन्होंने भारतीय भाषाओं और परंपरा को शिक्षा के केंद्र में लाने की पहल की।
राजनीति में वैचारिक स्पष्टीकरण के साथ आगमन
1929 में उन्होने बंगाल विधान परिषद में प्रवेश किया। कांग्रेस से असहमति के कारण उन्होंने 1930 में अलग राह चुनी। 1944 में वे हिंदू महासभा के अध्यक्ष बने, लेकिन उनका राष्ट्रवाद कट्टर नहीं बल्कि संविधानसम्मत सांस्कृतिक राष्ट्रवाद था। उन्होंने जिन्ना की द्विराष्ट्र थ्योरी का स्पष्ट विरोध किया और बार-बार चेताया था कि “विभाजन शांति नहीं लाएगा, यह स्थायी घृणा का बीज बोएगा।”
लियाकत-नेहरू समझौता और इस्तीफा
1947 में स्वतंत्र भारत की पहली केंद्र सरकार में उन्हें उद्योग मंत्री बनाया गया। लेकिन 1950 के लियाकत-नेहरू समझौते से वे इतने असहमत हुए कि उन्होंने पद छोड़ दिया। उन्होंने कहा, “यह समझौता भारत के सम्मान और हिंदू शरणार्थियों के जीवन के साथ समझौता है।”
जनसंघ की स्थापना और अनुच्छेद 370 का विरोध
1951 में उन्होंने भारतीय जनसंघ की स्थापना की जो आज की भारतीय जनता पार्टी का प्रारंभिक स्वरूप था। उनका राजनीतिक उद्देश्य स्पष्ट था, एक संविधान, एक राष्ट्र, एक पहचान। उन्होंने अनुच्छेद 370 का संसद में तीखा विरोध किया और कहा, “एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चल सकते।” 1951-52 के आम चुनावों में राष्ट्रीय जनसंघ के तीन सांसद चुने गए जिनमें एक डॉ. मुखर्जी भी थे। तत्पश्चात उन्होंने संसद के अन्दर 32 लोकसभा और 10 राज्यसभा सांसदों के सहयोग से नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी का गठन किया।
गिरफ्तारी, मृत्यु और रहस्य
1953 में उन्होंने बिना परमिट जम्मू-कश्मीर में प्रवेश का प्रयास किया। 11 मई को उन्हें गिरफ्तार कर श्रीनगर के पास निशात बाग में हिरासत में रखा गया। 23 जून 1953 को उनका निधन हुआ। आधिकारिक तौर पर इसका कारण ‘हृदयगति रुकना’ बताया गया, लेकिन उनके इलाज और हालात को लेकर आज भी सवाल उठते हैं।उनकी माँ जोगमाया देवी ने नेहरू को पत्र लिखकर सवाल किया था कि क्या भारत में विपक्ष का नेतृत्व करना अपराध है? उन्होने यह भी कहा था कि ”मेरे पुत्र की मृत्यु भारत माता के पुत्र की मृत्यु है”
सपना पूरा हुआ अनुच्छेद 370 समाप्त
2019 में जब संसद ने अनुच्छेद 370 को समाप्त किया, तब डॉ. मुखर्जी के शब्द और बलिदान देशभर में फिर गूंज उठे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आज भारत ने डॉ. मुखर्जी के सपनों को साकार किया है।” डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी सिर्फ एक राजनेता नहीं थे वे राष्ट्रविचार के प्रहरी थे। शिक्षा, संसद, नीति और संघर्ष उन्होंने हर क्षेत्र में राष्ट्र को मजबूत किया। एक दक्ष राजनीतिज्ञ, विद्वान और स्पष्टवादी के रूप में वे अपने मित्रों और शत्रुओं द्वारा सामान रूप से सम्मानित थे। एक महान देशभक्त और संसद शिष्ट के रूप में भारत उन्हें सम्मान के साथ याद करता है।
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