भारत में शादियों का बढ़ता खर्च – शिक्षा की तुलना में डबल खर्च शादी पर

भारत में शादियों पर शिक्षा से दोगुना खर्च

इन दिनों देश में शादियों का मौसम चल रहा है। शहरों से लेकर गांवों तक, घरों में रौनक है, बाजारों में चहल-पहल है, और सोशल मीडिया पर सजधज और दिखावे की होड़ मची हुई है। गुजरते वक्त के साथ भारतीय शादियां सिर्फ दो लोगों का मिलन नहीं रही, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा और दिखावे का प्रदर्शन बन चुकी हैं। एक समय शादियाँ बेहद सामान्य तरीके से एवं प्राकृतिक ढंग से आयोजित होती थी, लेकिन अब इनका खर्चा बेहद बढ़ चुका है। विवाह एक सांस्कृतिक और पारिवारिक आयोजन की जगह एक उद्योग में बदलता जा रहा है। 

शादियों में निकली जाने वाली बारात
शादियों में निकली जाने वाली बारात

आंकड़ें क्या कहते हैं 

जेफरीज की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 80 लाख से 1 करोड़ तक शादियां होती हैं, जो अमेरिका (20-25 लाख) और चीन (70-80 लाख) से कहीं अधिक हैं। लेकिन सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि भारतीय शादियों पर शिक्षा की तुलना में दोगुना खर्च किया जाता है। वहीं अमेरिका जैसे देशों में शादी पर खर्च शिक्षा के आधे से भी कम होता है।

भारत में शादी उद्योग की अनुमानित कीमत 130 अरब डॉलर (लगभग ₹10.7 लाख करोड़) है, जो अमेरिका के वेडिंग मार्केट ($70 अरब) से कहीं बड़ा है। यह केवल चीन ($170 अरब) से छोटा है। यह आंकड़ा भारत के खाद्य और किराना बाजार के बाद दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता उद्योग बनाता है।

औसत भारतीय कितना खर्च करता है?

जेफरीज के अध्ययन के अनुसार, एक औसत भारतीय अपनी शादी पर अपने प्रति व्यक्ति जीडीपी ($2,900 या ₹2.4 लाख) का लगभग पांच गुना खर्च करता है। यह आंकड़ा उनके वार्षिक घरेलू आय (₹4 लाख) से भी तीन गुना अधिक है। कई मामलों में तो यह खर्च उनकी सालाना कमाई का 15 गुना तक होता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि शादियों का खर्च आमदनी के अनुपात में अत्यधिक है। अनुमानों के मुताबिक भारतीय लोग अपनी जीवनभर की कुल कमाई का लगभग पाँचवां हिस्सा यानि 20 फीसदी केवल अपनी शादी पर खर्च कर देते हैं।

शादी का हॉल

इसके सामाजिक और आर्थिक दुष्परिणाम

लाखों परिवार शादी के खर्च के लिए कर्ज लेते हैं, जिसे चुकाने में सालों लग जाते हैं। खासकर मध्यम और निम्न आय वर्ग के लिए यह कर्ज जीवनभर की वित्तीय परेशानियों का कारण बन सकता है।

2022-23 में भारत की घरेलू बचत दर 50 वर्षों के निचले स्तर 5.1% पर पहुंच गई। महंगी शादियों का खर्च इस स्थिति को और बदतर बनाता है। जब लोग शादी में जरूरत से ज्यादा खर्च करते हैं, तो दीर्घकालिक निवेश और बचत की क्षमता प्रभावित होती है, जिससे देश की आर्थिक वृद्धि धीमी हो सकती है।

भव्य शादियों की होड़ ने समाज में ऐसा माहौल बना दिया है कि सामान्य परिवार भी दिखावे की दौड़ में शामिल हो जाते हैं। इससे सामाजिक असमानता बढ़ती है और मध्यम वर्ग पर अनावश्यक मानसिक व आर्थिक दबाव आता है। इसके अलावा भारतीय परंपरा के अनुसार, शादी का अधिकतर खर्च लड़की के परिवार पर होता है। यह परंपरा आज भी व्यापक रूप से कायम है, जो लिंग आधारित आर्थिक असमानता को और गहरा करती है।

भारतीय विवाह प्रणाली धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक मूल्यों पर आधारित थी। लेकिन अब यह एक बाज़ार आधारित उद्योग में बदल चुकी है, जो परंपराओं और अंधविश्वासों का शोषण करता है। असल में, हिंदू दर्शन और भारतीय संस्कृति में सादगी, संतुलन और सामाजिक जिम्मेदारी को महत्व दिया गया है, लेकिन आधुनिक विवाह समारोह इन मूल्यों से दूर हो चुके हैं।

“Wed in India” एक नई सोच

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2023 की ‘मन की बात’ में “Wed in India” की अपील की, जो ‘Make in India’ और ‘Travel in India’ जैसी पहलों की तर्ज पर है। यह पहल भारत में घरेलू पर्यटन, वेडिंग प्लानिंग और स्थानीय व्यापार को बढ़ावा देने का एक प्रयास है। यदि इसे सही ढंग से लागू किया जाए, तो यह विवाह उद्योग को स्थानीय स्तर पर अधिक टिकाऊ और समावेशी बना सकता है।

शादी का माहौल

कुछ आवश्यक पहलू

शादी भारतीय समाज में एक पवित्र और सांस्कृतिक परंपरा है, जिसे बनाए रखना आवश्यक है। लेकिन यह भी जरूरी है कि हम इस परंपरा को दिखावे और आर्थिक दबाव का माध्यम न बनने दें। इसके लिए सामाजिक जागरूकता: सादगीपूर्ण शादियों के लिए सामाजिक अभियानों की जरूरत है, खासकर शैक्षिक संस्थानों और मीडिया के माध्यम से। इसके अलावा युवाओं और परिवारों को वित्तीय प्रबंधन और दीर्घकालिक योजनाओं के लिए शिक्षित करना ज़रूरी है। शादी जीवन का एक अहम हिस्सा है, लेकिन यह ज़िंदगी को शुरू करने का माध्यम होना चाहिए, खत्म करने का नहीं। भारत को आर्थिक रूप से मज़बूत और सामाजिक रूप से संतुलित बनाने के लिए यह ज़रूरी है कि हम अपनी परंपराओं की जड़ों को समझें, और उन्हें आधुनिक समय के अनुरूप ढालें न कि बाज़ार की अंधी दौड़ में अपनी आर्थिक क्षमता खो दें।

भारतीय समाज से जुड़े और आर्टिकल पढ़े Vichar Darpan | Society.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top